प्रस्तावना

मला कविता करावीशी वाटते , पण जी कविता मला अभिप्रेत आहे , ती कधीच कागदावर अवतरली नाही . ती मनातच उरते , जन्माच्या प्रतीक्षेत ! कारण कधी शब्दच उणे पडतात तर कधी प्रतिभा उणी पडते .म्हणून हा कवितेचा प्रयास सतत करत असतो ...........
तिला जन्म देण्यासाठी , रूप देण्यासाठी ,शरीर देण्यासाठी ......
तिला कल्पनेतून बाहेर पडायचे आहे म्हणून
....

Thursday, 28 November 2024

Ruins -The City of Silence


 

In the cloak of silence, lies a lost world,
No alley, no ally, not even a bud found.

The dreams once chased have all slipped away,
Now every map of life is mute, has nothing to say.

The lamps that once glowed have all burned out,
A silent carnival, my friend, where old memories rot.

Where footsteps once echoed, now just desolation remains,
The ground is silent,The roads erased, like forgotten refrains.

O City of Silence, no grudge do I bear,
No sorrow to find, no burden to wear.

No voice breaks the stillness, no sound here stirs,
Just one realisation envelopes,This emptiness whispers.

Come, let’s sit by these ruins, while the air is still,
For who knows what story each stone wants to tell, In this chill.

Friday , 29/11/2024   , 11:25 AM
Ajay Sardesai (Megh)

शहर-ए-ख़ामोश


ख़ामोशी के साए में, गुम एक जहान है

गली है, कली, कोई गुलिस्तां है। 

 

देखें थे जो ख्वाब सभी मिट गए एक साथ

देखो कैसे ज़िंदगी का हर नक़्शा बेज़ुबान है। 

 

चिराग़ जो जलते थे, अब बुझ चुके सभी

सन्नाटों का मेला है,दोस्त ये कब्रस्तान है।  

 

जिन रास्तों पर क़दमों की आहटें थीं

वो राहें भी अब जैसे बेनिशान हैं। 

 

शहर--ख़ामोश, तुझसे कोई शिकवा नहीं

अब कोई दर्द नहीं यहां और इम्तिहान है। 

 

कहीं कोई सदा, कोई पुकार है

इस वीराने का बस यही गुमान है। 

 

, बैठ ले कुछ देर इन खंडहरों के पास,

जाने किस पत्थर में छुपी कौन सी दास्तान है।


सोमवार  , २५/११/२०२४     , ०६:१५ AM 

अजय सरदेसाई (मेघ)