रंजिश ही
सही,
दिल
ही
दुखाने
के
लिए
आ।
आ
फिर
से
मुझे,
छोड़
के
जाने
के
लिए
आ।।
तआरुफ़
एक
उम्र
से,
खुशी
से
मेरा
नहीं।
दर्द
से
ही,मुतारफ
मुझे
करने
के
लिए
आ।।
है
समझते
लोग
के
तुझे
कोई
मोहब्बत
मुझसे
नहीं।
मेरा
न
सही,उनका
ये
भरम
ही
तोड़ने
के
लिए
आ।।
कई
दिनों
से
मायूस
बैठा
है
महताब
फलक
पर।
ऐ
राहत-ए-जाँ
,उस
मायूसी
को
तो
मिटने
के
लिए
आ।।
दुनिया
का
तुज
पर
ये
इलज़ाम
है,
के
तू
बेवफा
है।
कुछ
और
नहीं
तो
ज़िल्लत
को
इस
मिटने
के
लिए
आ।।
मैं
रिन्द
हूँ,मुझे
मय
ही
सहारा
है
उम्र
भर।
तू
साकी
बन
मेरी,ये
सहारा
देने
के
लिए
आ।।
ये
दिल्लगी
नहीं,दिल
की
लगी
है
तेरी
कसम
।
दिल
की
लगी
ये
प्यास
बुझाने
के
लिए
तो
आ।।
कब
से
ये
आँखें
तिरे
इंतज़ार
में
तक
रही
बेदार।
ऐ
राहत-ए-हयात
,इन
आँखों
की
राहत
के
लिए
आ।।
सोमवार , १९/०८/२०२४ १२:०३ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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