Thursday, 22 August 2024

क्या हो तुम


कविता हो,ख्वाब हो मेरा,क्या हो तुम।

जो भी हो,टूटे दिल का मरहम हो तुम।।

 

छाव हो,काली घटा हो,क्या हो तुम।

जो भी हो,तपते दिल की ठंडक हो तुम।।

 

दिया हो,चराग़-ए-महफ़िल हो,क्या हो तुम। 

जो भी हो,लेकिन मेरे लिए रौशनी हो तुम।।

 

जंगल हो,पहाड़ी हो,जाने कौनसा दयार हो तुम।

जो भी हो,लेकिन एक हसीन मंजर हो तुम।।

 

यहाँ हो,या वहॉँ हो,जाने कहाँ हो तुम  ।

कहीं भी रहो,मेरे दिल के क़रीब हो तुम।‌।

 

गुरूवार   , २२/०८/२० १४:००   PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

 

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