Thursday, 21 December 2023

तिरे ऑंखो की शबनम


तिरी ऑंखो की शबनम गर मेरे होंठों पर होती

तिरी ऑंखे नम ना होती मिरी प्यास बुझ गई होती ।।


शिद्दत से अगर झांको मिरी ऑंखो में कभी हसिन

ऑंखो के रास्ते दिल की गहराईयों मे उतर गयी होती ।।


ये जो मज्मा सा लगा है तेरे दर के सामने अभी

ना होता जो तुने हुस्न कि यु नुमाइश कि होती ।।


मैंने मोहब्बत से तौबा की होती ज़ालिम

तुने मुझसे गर इश्क में बेवफाई की होती ।।


जिन्दगी भर मैंने सनम तिरी इबादत की होती 

इनायत भरी बस इक नज़र तुने मुझपर डाली होती ।।

 

गुरुवार दिनांक २१/१२/२३ , :१५ PM

अजय सरदेसाई (मेघ )

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