Wednesday, 13 September 2023

अफ़सोस इसी का है


 

अफ़सोस इसी का है की दिल को उनसा दर्द नहीं होता

वर्ना नाम हमारा भी मिर--ग़ालिब सा तारीख में होता I

 

ये बात और है के शेर--शायरी हम भी कर लेते है

खुदा काश हमारे पास भी उनसा रंग--बहर होता I

 

कौनसी वो तिश्नगी है जो पि जाते है मिर दर्द--ज़िन्दगी  

फिर नैरंग--ख़्याल आता है और एक शेर है पैदा होता I

 

एक जमाना हो रखा है मिरि कोशिशों को बावजूद इसके

ऐसा क्यूँकर है की ग़ज़ल को मिरि कोई रंग--बहर होता I

 

अगर होते मिर या फिर होते ग़ालिब इस ज़माने में 'मेघ'

कसम खुदा की मैंने यह इल्म और हुनर उनसे चुराया होता I

 

बुधवार , १३/०९/२०२३ , ०५:३६ PM

अजय सरदेसाई ( मेघ )

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